कहानी ययाति पुत्री माधवी की – नारी के यौन शोषण की एक पौराणिक कथा(Part-1)
आज की पौराणिक कहानी है नहुष कुल में उत्पन्न चन्द्रवंश के पांचवें राजा ययाति की पुत्री ‘माधवी की। इस कथा का वर्णन महाभारत के उद्योगपर्व के 106वें अध्याय से 123वें अध्याय में आता है। माधवी थी तो राज पुत्री पर उसके पिता ‘ययाति’ ने उसे इसलिए गालव ऋषि को सौप दिया था ताकि वो उसे अन्य राजाओं को सौप कर अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में देने के लिए 800 श्वेतवर्णी अश्व प्राप्त कर सके। गालव ऋषि ने उसे तीन राजाओं और अंत में अपने गुरु विशवमित्र को सौपा। आइए कथा विस्तार से जानते है-
गालव, ऋषि विश्वामित्र के बड़े प्रिय शिष्य थे। जब उनका अध्ययन पूर्ण हुआ तो नियमानुसार गुरु से दीक्षा लेकर गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होने की अनुमति लेने का अवसर उपस्थित हुआ। गालव ने सोचा, यही अवसर है, जब कि गुरु के प्रति मैं अपनी अपार भक्ति एवं श्रद्धा का कुछ परिचय दे सकूँगा। उन्होंने निश्चय किया कि अपनी शक्ति के अनुसार कोई-न-कोई गुरु-दक्षिणा देकर ही आश्रम से विदा लेंगे। किन्तु उनके गुरु विश्वामित्र से गालव की स्थिति छिपी नहीं थी। फलतः गालव के अनेक अनुरोधों एवं दुराग्रहों को क्षमा कर उन्होंने उन्हें गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होने की ही अनुमति प्रदान की। किन्तु गालव भी अपने निश्चय के प्रति अविचल थे। उनको यह कथापि स्वीकार नहीं था की गुरु को कोई दक्षिणा दिये बिना ही वे आश्रम से विदा ले। वह अपने निश्चय पर डटे रह गये और विश्वामित्र के बहुत कुछ समझाने-बुझाने पर अन्त तक यही कहते रहे, गुरुदेव! मेरी विद्या तब तक फलवती नहीं हो सकेगी, जब तक मैं आपको कोई दक्षिणा नहीं दे देता।
विश्वामित्र का सहज क्षात्र तेज गालव के इस दुराग्रह पर उद्दीप्त हो उठा। अकिंचन और युवक ब्राह्मण-पुत्र की यह धृष्टता उन्हें मर्मभेदिनी-सी लगी, जो उन्हें यह आ�